बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
दावते दीन का काम बहुत आसान है। इसे हर इंसान कर सकता है चाहे उसका इल्म कितना ही कम हो।
इल्म कम हो तो भी चलेगा लेकिन जिन गुणों की ज़रूरत सबसे ज्यादा पड़ती है, वे हैं हिम्मत और कॉन्फिडेंस। आप दावते दीन की पूरी प्रोसेस को समझ लेंगे तो आप इस राह के रेज़िस्टेन्स को अच्छी तरह पहचान लेंगे।
कोई इंसान एक आयत का इल्म रखता है तो वह उसे दूसरे तक पहुंचा दे। इस पहुंचाने का नाम तब्लीग़ है। उस आयत में जो बात बताई गई है उस बात की तरफ़ लोगों को बुलाने का नाम अरबी में दावत है।
हम सब अपने दुनिया के कामों को करने के लिए कुछ जानकारी दूसरों को देते रहते हैं। हम सब अपने कामों में मदद के लिए दूसरों को बुलाते हैं। एक काम में हम सब सीधे या दूसरे तरीकों से शामिल रहते हैं। अगर एक इंसान कोई बस चला रहा है तो वह उसमें बैठने के लिए लोगों को बुलाता है। कोई शख्स कुछ सामान बेचता है तो उसे खरीदने के लिए लोगों को बुलाता है। कोई किसान खेती करता है तो वह बीज बोने के लिए और फसल काटने के लिए लोगों को बुलाता है। कोई औरत खाना पकाती है तो वह अपने शौहर और अपने बच्चों को खाने के लिए बुलाती है। ये सब अपनी और दूसरों की भलाई के काम हैं। भलाई के कामों के लिए हम सब दिन रात दूसरों को बुलाते हैं। हम सब बुलाने में माहिर हैं। इस बुलाने को अरबी में दावत कहते हैं। इसे हिंदी में आह्वान बोलते हैं। किसी का दीन या धर्म कुछ भी हो लेकिन दावत और आह्वान सिर्फ कल्याणकारी कामों के लिए ही किया जा सकता है जिनसे सबकी फ़लाह (wellness) होती है।
कुछ लोग नाहक़ बातों की तरफ बुलाते हैं। वे चोरी, नशा और मारपीट जैसे कामों के लिए अपने दोस्तों को बुलाते हैं। इन सब कामों को करने के लिए बुलाना क्राइम है। यह बुलाना दीन-धर्म में गुनाह और पाप है। इन कामों से बचना ज़रूरी है।
जब हम बुराई से बचते हैं और भलाई के काम करते हैं और भलाई की तरफ लोगों को बुलाते हैं तो हम दीन का काम करते हैं। हर धर्म और हर दीन के लोग भलाई का काम करते हैं। हर धर्म और हरेक दीन के लोग आह्वान और दावत का काम करते हैं।
जब आप एक दीन की तरफ़ दावत का काम शुरू करते हैं तो आपको जो लोग बुरा कहेंगे आप उन्हें 3 क़िस्मों में बांट सकते हैं-
1. दीन और इंसानियत के दुश्मन
2. मज़हबी रिवायतों के मुहाफ़िज़ उलमा और उनके मुरीद
3. आपके अपने मुबल्लिग़ दोस्त
आपको पता होना चाहिए कि दीन के विरोधियों से अपनी आलोचना ज़रूर सुननी पड़ेगी। वे आपकी मज़ाक़ उड़ाते हैं, आपकी बात को ग़लत कहते हैं, आपकी नीयत पर शक करते हैं। कोई कहता है कि आप शोहरत के लिए यह सब कर रहे हैं। कोई कहता है कि आपको कहीं से फ़न्ड मिल रहा है और कोई कहता है कि आप इस काम से धन कमाना चाहते हैं। इसी तरह के कई आरोप विरोधी लगाते हैं। उनकी झूठी और कड़वी बातें को सहने के लिए हिम्मत चाहिए। जो बात आप उनके सामने पेश कर रहे हैं, उसे बार-बार सबके सामने रखने के लिए कॉन्फिडेंस चाहिए। आपका उस दीन में मजबूत यक़ीन ज़रूरी है। आपको इस यक़ीन की ज़रूरत है कि यह दीन ज़मीनो आसमान में क़ायम है और कोई इंसान इसे माने या न माने यह दीन हक़ है। जो इसे मानेगा, वह अपना भला करेगा और जो नहीं मानेगा, वह अपना नुक़्सान करेगा।
इससे भी ज़्यादा हिम्मत और कॉन्फिडेंस की ज़रूरत तब पड़ती है, जब आपको आपके दीन के आलिम नसीहत करते हैं कि
आप ग़लत काम कर रहे हैं,
आपका नज़रिया ग़लत है,
आप का तरीक़ा ग़लत है।
ऐसा काम करके आप अल्लाह को नाराज़ कर रहे हैं।
इसके नतीजे में वह आपको दुनिया में भी सज़ा देगा और वह आपको आख़िरत में जहन्नम में डाल देगा। इसलिए आप इसे छोड़ दीजिए।
ये आलिम आपके मसलक के भी हो सकते हैं और दूसरे मसलकों के आलिम तो ज़रूर यह सब कहेंगे। वे आप पर कुफ़्र और गुमराही के फ़तवे लगा सकते हैं। इससे आप लड़खड़ा सकते हैं। आपको अपने काम पर और अपने तरीक़े पर शक हो सकता है। आप इस काम को छोड़ सकते हैं। इसलिए आप काम शुरू करने से पहले पूरी तहक़ीक़ और पूरी रिसर्च कर लें कि जो बात आप दूसरों को पहुंचा रहे हैं, वह बात हक़ है और जब कोई दूसरा आदमी आपको ग़लत बताए तब आप एक बार फिर से चेक कर लें कि जो बात आप कह रहे हैं, वह बात सही है, उसमें कोई ग़लती नहीं है। आप जिस तरीक़े से दीन की बात कह रहे हैं, वह दीन में जायज़ है या नहीं और जब आप उसे हक़ और जायज़ पाएं तो आप उस पर डटे रहें। आप उसमें कोई ग़लती पाएं तो उसे सही कर लें।
हेल्दी आलोचना का हमेशा स्वागत करें। नेक नीयती के साथ आपकी कमी बताने वाले आप पर ज़ाती हमला नहीं करेंगे। वे सबके बीच में आपकी कमियाँ बताकर आपको शर्मिन्दा नहीं करेंगे। उनके अमल से आप उन्हें पहचान लेंगे।
हेल्दी आलोचना का हमेशा स्वागत करें। नेक नीयती के साथ आपकी कमी बताने वाले आप पर ज़ाती हमला नहीं करेंगे। वे सबके बीच में आपकी कमियाँ बताकर आपको शर्मिन्दा नहीं करेंगे। उनके अमल से आप उन्हें पहचान लेंगे।
आप अकेले ही दीन की तब्लीग़ और दावत का काम शुरू करेंगे तो भी आपके साथ कुछ लोग जरूर जुड़ेंगे और अगर आप किसी जमात में शामिल होकर काम करेंगे तो आपको ज़्यादा साथी मिलेंगे। इन सब साथियों का सोचने का अंदाज और बर्ताव आपसे मुख़्तलिफ होगा। कुछ साथी जल्दी ही दूसरे कामों की तरफ मुड़ जाएंगे और वे दावत के काम को ख़ुद ही छोड़ देंगे। कुछ साथी देर तक डटे रहेंगे, जिनके साथ आपका ज़्यादा वक़्त गुजरेगा। आपको उनके साथ दुनिया के कुछ कामों में लेन देन करना होगा।
मशहूर सायकोलॉजिस्ट Haleh Banani का कहना है कि एक इंसान 1 मिनट में 500 अल्फ़ाज़ सोचता है और उनमें 85% नेगेटिव होते हैं। ऐसे नेगेटिव माइंड और एटीट्यूड के लोग आपके साथ काम करते हैं। वे आपके बारे में नेगेटिव बातें बोलेंगे। ख़ुद आपके साथी आप पर इल्ज़ाम लगाएंगे। वे आपके बढ़ते हुए असर से जलन महसूस कर सकते हैं या कोई और वजह हो सकती है। वे आप पर इल्ज़ाम रखेंगे कि आप दीन की दावत का काम अल्लाह की रज़ा के लिए नहीं करते बल्कि अपनी नामवरी के लिए करते हैं। आप तब्लीग़ का काम अपनी सलाहियतों का डंका पीटने के लिए करते हैं। वे आपको डराएंगे कि आपके काम के नतीजे में आपको आख़िरत में अल्लाह से कुछ मिलने वाला नहीं है। रिवर्टेड मुस्लिम से लेकर पुराने ख़ानदानी सैयद तक आपको डराएंगे। आप सब्र और शुक्र से काम लेंगे तो ये लोग आपके साथ लगातार बने रहेंगे। आपकी हिम्मत और आपके कॉन्फिडेंस को बढ़ाने में सबसे ज़्यादा मदद यही लोग करेंगे, अल्हमदुलिल्लाह।
ये लोग ख़ुद कन्फ़्यूज़्ड हैं और दूसरों को भी कन्फ़्यूज़्ड करते हैं। जब मुस्लिम समाज के आम लोग ख़ुद को गुनाहगार और कम इल्म देखकर दावत का काम नहीं करते तो ये उन्हें जा जाकर प्रेरणा देते हैं कि
'आप हल्के हों या भारी हों लेकिन दावत के लिए ज़रूर निकलें'।
और जब इन्हें दूसरी जगह कोई इनकी प्रेरणा के बिना दावत का काम करते हुए मिलता है तो ये दूसरों को बताते हैं कि उसका इल्म कम है और उसमें कई कमियाँ हैं।
इसका मक़सद कुछ जगह यह हो सकता है कि नए लोग इनकी प्रेरणा से इनसे जुड़कर इनके तरीक़े से काम करें और बाक़ी लोगों के इल्म को कम और उनके काम को ग़ैर मक़बूल और मशकूक (Doubtful) समझें। यह एकाधिकारवादी मानसिकता है। पहले यह सिर्फ़ आलिमों में फ़िक़ही मसलक की हद तक देखी जाती थी क्योंकि मदरसों में दावते हक़ का शोअबा मौजूद न था। अब यह मानसिकता दावते दीन के फ़ील्ड में भी दिखाई देती है। यह एकाधिकारवादी मानसिकता सिर्फ़ रिवायती आलिमों में ही नहीं है बल्कि यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए दानिशवरों में भी है, जो कि दावतो तब्लीग़ का काम कर रहे हैं। मानसिकता और अधिनायकवाद वही है सिर्फ़ कुर्ते पाजामे और सूट बूट का फ़र्क़ है।
आप क़ुरआन और हदीस की रौशनी में अपने विरोधियों को देखेंगे, जो आपको बुरा कहते हैं, आप अपने दीन के आलिमों को देखेंगे, जो आपको झूठा कहते हैं, आप अपने साथियों को देखेंगे जो आपके हल्क़े में आपके बारे में निगेटिव प्रचार करते हैं और आपके बारे में बुरा गुमान रखते हैं तो आपको इस बात से ग़म न होगा बल्कि ख़ुशी होगी कि आपका रब आपको इनके ज़रिए दुनिया में ही पाक कर रहा है और वह आपको दुनिया से पाक करके उठाएगा। ये लोग आपकी माफ़ी का ज़रिया बनेंगे और यही लोग आपको आपके रब से ऐसा अज्र दिलाने का ज़रिया बनेंगे जो कभी ख़त्म न होगा अल्हम्दुलिल्लाह।
मैंने दावते दीन के फ़ील्ड में पिछले 30-35 साल जो काम किया है। उस काम के दौरान जो मुझे जो तजुर्बात हुए हैं, उनकी बुनियाद पर मैंने यह लेख नए पुराने दाईयों की तसल्ली और हिदायत (guidence) के लिए लिखा है ताकि वे अपना इल्म कम देखकर मायूस न हों, वे दीन के दुश्मनों और अपने दोस्तों के इल्ज़ामों से मायूस न हों।
सब लोग ईसा मसीह, मूसा अलैहिस्सलाम और नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुत्मइन न हुए। मुस्लिमों में अबू बक्र, उमर, उस्मान, अली और हज़रत आयशा रज़ियल्लाहुम अज्मईन तक पर इल्ज़ाम धरने वाले भी मिल जाते हैं। समाज के लोग ऐसे ही होते हैं। इमाम हसन और इमाम हुसैन रज़ि. को क़रीबी रिश्तेदारों और मुस्लिमों ने क़त्ल तक किया। वे आप पर भी इल्ज़ाम लगाएं तो जान लें कि यह होना ज़रूरी था। यह रेज़िस्टेन्स ज़रूर आता है।
समाज में सौ तरह के लोग हैं। हर आदमी के पास सोच का एक सांचा है। जिसमें वह आपको ढालना चाहता है। वह आपसे तभी राज़ी होगा, जब आप उसकी सोच के सांचे में ढल जाएंगे। ज़ाहिर है कि आप सौ अलग अलग लोगों की सोच के सौ अलग अलग सांचों में नहीं ढल सकते। इसलिए आप समाज के सभी आदमियों को राज़ी भी नहीं कर सकते और न ही रब की तरफ़ से आप पर यह फर्ज़ है कि आप समाज के सब लोगों को राज़ी करें।
आप पर यह फर्ज़ है कि आप अल्लाह की तौहीद को पहचानें। शिर्क की जितनी भी क़िस्में हैं, उन्हें पहचानें और उनसे बचें। आप पर यह लाज़िम है कि जो लोग आपको दुख तकलीफ़ पहुंचाएं, आप उन्हें इस उम्मीद में माफ़ करते रहें कि आपका रब आप को माफ़ करेगा। आप ज़मीन वालों पर रहम करें, आसमान वाला आप पर रहम करेगा। जिस पैमाने से आप दूसरों को नापते हैं, उसी पैमाने से आपको नापा जाता है।
आप लोगों को उनकी ख़ूबियों के पहलुओं से देखें। रब ने जो नेमतें और जो ज़िंदगी आपको दी हैं, उनके लिए रब के शुक्रगुज़ार बनें। आप लोगों के शुक्रगुजार बनें। शुक्र से अज़ाब दूर रहता है। शुक्र से नेमत बढ़ती है। जो लोग आपके पास बैठेंगे, वे आपसे शुक्र का तरीक़ा सीखेंगे। शुक्र का तरीक़ा नबियों का तरीक़ा है। शुक्र से आपके दोस्त बरकत पाएंगे। अल्लाह त'आला आपके दोस्तों में भी बरकत देगा। आपके दोस्त भी बढ़ेंगे। आपको अच्छे और मददगार दोस्त भी मिलेंगे। जैसे आप ख़ुद होंगे, वैसे ही लोग आपको ज़रूर मिलेंगे।
आपका विरोध आपकी शक्ति को बढ़ाएगा। इसलिए आप अपने विरोध और आलोचना से मायूस होकर दावत का काम बंद न करें। कभी कहना पड़े तो अपने विरोधियों और आलोचकों से वही कह दें, जिसका हुक्म अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिया है-
आपका विरोध आपकी शक्ति को बढ़ाएगा। इसलिए आप अपने विरोध और आलोचना से मायूस होकर दावत का काम बंद न करें। कभी कहना पड़े तो अपने विरोधियों और आलोचकों से वही कह दें, जिसका हुक्म अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिया है-
कह दो, "यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! - और मैं हरगिज़ मुशरिक नहीं हूँ।"
पवित्र क़ुरआन 12:108
जब आप दीनी दावती की पूरी प्रोसेस को समझ लेंगे तो आप मनोवैज्ञानिक रूप से पूरी तरह तैयार हो जाएंगे। तब आपको दीन की दावत का काम बहुत आसान लगेगा। आपको जो भी रेजिस्टेंस पेश आएगा, वह आपको नेचुरल लगेगा क्योंकि आप पहले से जानते हैं कि दीन की दावत में यह मरहला ज़रूर आता है। इसी के साथ आपको तरह तरह से
मदद और फ़तह भी मिलेगी। मुश्किल के साथ आसानी भी है।
नोट: इस लेख का ज़्यादा हिस्सा गूगल की बोर्ड ऐप के ज़रिए बोल बोल कर लिखा गया है। यह एक अच्छा टूल है अल्लाह का शुक्र है जिसने हमें दावत के काम के लिए हर तरह से आसानियाँ बख़्शी हैं।
नोट: इस लेख का ज़्यादा हिस्सा गूगल की बोर्ड ऐप के ज़रिए बोल बोल कर लिखा गया है। यह एक अच्छा टूल है अल्लाह का शुक्र है जिसने हमें दावत के काम के लिए हर तरह से आसानियाँ बख़्शी हैं।
बहुत ही शानदार लेख है अनवर जमाल साहब अल्हम्दुलिल्लाह इसे पढ़ कर बहुत इत्मीनान मिला है ।
ReplyDeleteइसे पढ़ते वक्त मुझे सूरह असर की वो आयत याद आयी जिसमे हक़ की तरफ बुलाने को कहा गया है और सब्र की तलकीन की गई है आपके इस लेख का एक बड़ा हिस्सा इसी आयात की तफ़्सीर करता है जहां तक मे समझा हूँ ।
और एक हिस्सा सूरह हजरत की आयत की तफ़्सीर करता है कि हमे किसी भी बात को तब तक आगे नही बढ़ाना चाहिए जब तक कि हम उसकी तहक़ीक़ ना कर लें ।
जब भी हम दावत का काम करें तो किसी के इल्जाम से न डरे सब्र से काम लेना चाहिए और हक़ की दावत देते रहना चाहिए ।
हक़ीक़त की अक्कासी है जनाब, मुरीद हो गया मैं आपका
ReplyDeleteJamal साहब आपकी लेखनी प्रखर और तेज है.
ReplyDeleteआपके काम बड़े नेक हैं जो आपके विचारों से पुख्ता होते हैं.
यह सच्चाई है कि नेक बंदों की आलोचना होती ही है.सब को राजी कर पाना मुश्किल है. ऐसे में जो दीन है उस पर कायम रहकर काम करना अल्लाह को पसंद है क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जाति भाइयों से अपने को न छिपाना? (इब्रा. 13:2-3, नीति. 25:21,28:27, मत्ती 25:35,36) तब तेरा प्रकाश पौ फटने के समान चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरी धार्मिकता तेरे आगे-आगे चलेगी, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा। (भज. 37:6, यिर्म. 33:6, लूका 1:78,79)
यशायाह 58:7-8
Alok ji, यक़ीनन दीन पर कायम रहकर काम करना अल्लाह को पसंद है और वह यही है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जाति भाइयों से अपने को न छिपाना? (इब्रा. 13:2-3, नीति. 25:21,28:27, मत्ती 25:35,36)
Deleteइस बात को मैं समझने की कोशिश करूंगा क्योंकि यह बहुत उत्तम विचार है:
तब तेरा प्रकाश पौ फटने के समान चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरी धार्मिकता तेरे आगे-आगे चलेगी, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा। (भज. 37:6, यिर्म. 33:6, लूका 1:78,79)
यशायाह 58:7-8
'तेरा प्रकाश' और 'यहोवा के तेज' से क्या तात्पर्य है? मैं इस पर ग़ौर करूंगा।
मैंने जब भी बाइबिल में दिए हुए नबियों के दृष्टांतों को ठीक से समझा है, मेरा जीवन ऊंचा उठा है।
आपका शुक्रिया!
Jamal साहब आपकी लेखनी प्रखर और तेज है.
ReplyDeleteआपके काम बड़े नेक हैं जो आपके विचारों से पुख्ता होते हैं.
यह सच्चाई है कि नेक बंदों की आलोचना होती ही है.सब को राजी कर पाना मुश्किल है. ऐसे में जो दीन है उस पर कायम रहकर काम करना अल्लाह को पसंद है क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जाति भाइयों से अपने को न छिपाना? (इब्रा. 13:2-3, नीति. 25:21,28:27, मत्ती 25:35,36) तब तेरा प्रकाश पौ फटने के समान चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरी धार्मिकता तेरे आगे-आगे चलेगी, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा। (भज. 37:6, यिर्म. 33:6, लूका 1:78,79)
यशायाह 58:7-8