हल: दूसरों को संतुष्ट करने के लिए कुछ न करें
एक बहुत दिलचस्प वाक़या है। एक बुजुर्ग थे गुनाह ए कबीरा से बचे हुए, गुनाहे सग़ीरा से बचे हुए, दीन के अरकान के पाबंद, वाजिबात के पाबंद, सुन्नतों के पाबंद और बहुत तक़्वा वाले। वह अक्सर रोज़े रखते थे और रातों को इबादत करते थे। वह लोगों की ख़िदमत करते थे और उन्हें दीन की तालीम देते थे। एक अच्छे दीनदार इंसान में जो भी ख़ूबियां हो सकती हैं, वे सब उनमें थीं। वह शादीशुदा थे और वह अपने घर वालों का पूरा ध्यान भी रखते थे। इस सबके बावुजूद उनकी बीवी उनसे संतुष्ट न थी। उनकी बीवी उन्हें रोज़ दीनदार बुजुर्गों के क़िस्से सुनाती। वह उनकी करामात के क़िस्से सुनाती और फिर उन्हें ताना देती कि देखो, एक यह बुजुर्ग हुए हैं और एक आप हैं कि आपसे हमने आज तक कभी एक भी करामत होते हुए न देखी।
एक बहुत दिलचस्प वाक़या है। एक बुजुर्ग थे गुनाह ए कबीरा से बचे हुए, गुनाहे सग़ीरा से बचे हुए, दीन के अरकान के पाबंद, वाजिबात के पाबंद, सुन्नतों के पाबंद और बहुत तक़्वा वाले। वह अक्सर रोज़े रखते थे और रातों को इबादत करते थे। वह लोगों की ख़िदमत करते थे और उन्हें दीन की तालीम देते थे। एक अच्छे दीनदार इंसान में जो भी ख़ूबियां हो सकती हैं, वे सब उनमें थीं। वह शादीशुदा थे और वह अपने घर वालों का पूरा ध्यान भी रखते थे। इस सबके बावुजूद उनकी बीवी उनसे संतुष्ट न थी। उनकी बीवी उन्हें रोज़ दीनदार बुजुर्गों के क़िस्से सुनाती। वह उनकी करामात के क़िस्से सुनाती और फिर उन्हें ताना देती कि देखो, एक यह बुजुर्ग हुए हैं और एक आप हैं कि आपसे हमने आज तक कभी एक भी करामत होते हुए न देखी।
जब उनकी बीवी ने उनसे रोज़ बार बार और बहुत ज़्यादा ऐसा कहा तो एक दिन उन्होंने सोचा कि ठीक है आज मैं अपनी बीवी को अपनी रियाज़त का करिश्मा और करामत दिखा ही देता हूं। वह अपने घर से बाहर निकले और पास के मैदान में खड़े होकर उन्होंने उड़ना शुरू किया। पहले वह ज़मीन से ऊपर उठे और फिर ऊपर उठने के बाद उड़ते हुए अपने घर के ऊपर से गुज़रे। उन्होंने देखा कि उनकी बीवी उन्हें देख रही है। थोड़ा आगे जाकर वह नीचे ज़मीन पर उतरे और चलते हुए घर आए। जैसे ही वह अपने घर में दाख़िल हुए, उनकी बीवी ने उनसे खुशी से ज़िक्र करना शुरू किया कि कैसे अल्लाह के एक बहुत बड़े वली अभी थोड़ी देर पहले उनके घर के ऊपर से उड़ते हुए गुज़रे हैं। वह उन्हें बताने लगी कि देखो वह कितने बड़े बुजुर्ग थे और उन्होंने कितनी बड़ी करामत दिखाई है और एक आप हैं कि आपसे आज तक हमने कोई करामत होते हुए न देखी।
वह बुजुर्ग कुछ बताने की कोशिश करते थे तो उनकी बीवी उनकी बात ही न सुनती थी। वह बस अपनी ही बात कही जा रही थी। फिर कुछ देर के बाद मौका पाकर उन बुजुर्ग ने अपनी बीवी से कहा की बेगम इस घर के ऊपर से उड़कर जाने वाला शख़्स आपका शौहर ही था।
अपने शौहर की बात सुनते ही वह औरत अचानक ऐतराज़ करते हुए बोली कि अच्छा, वह आप थे। तभी आप टेढ़े टेढ़े उड़ रहे थे। आपसे तो उड़ना भी नहीं आता।
इस दिलचस्प क़िस्से के ज़रिए यह तालीम दी गई है कि आप चाहे जितनी खूबियों के मालिक हों, आप किसी फ़न में कितने भी माहिर क्यों न हों लेकिन बीवी बच्चों, रिश्तेदारों और दोस्तों की नज़र में उनकी ज़्यादा वैल्यू नहीं होती। वे आपको आपकी कमियों के पहलुओं से देखते हैं। वे आप से संतुष्ट न होंगे। इसलिए आप उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश न करें। आप अपने मक़सद पर ध्यान दें और अपना काम अच्छी तरह करें, बस।
मुझे याद है कि यह कहानी उर्दू की किताब मख़्ज़ने अख़लाक़ में दर्ज है। मेरे एक दोस्त मुफ़्ती इलियास क़ासमी साहब ने मुझे बरसों पहले यह किताब पढ़ने की सलाह दी थी। वह आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब रहमतुल्लाहि अलैह के शागिर्द हैं। वह आजकल गोंडा के एक मदरसे के जिम्मेदार हैं। पहले वह देवबंद में इदारा इल्मो हिकमत के नाम से उनका एक कुतुबख़ाना था। मख़्ज़ने अख़लाक़ में अख़्लाक़ी नसीहत देने वाली कहानियाँ और मिसालें हैं।
आप इस कहानी से दावत और तब्लीग़ के मैदान में नसीहत हासिल कर सकते हैं। चाहे आपने दीन सीखने और तबलीग़ करने में अपनी उम्र गुज़ार दी हो। आप नेकियाँ करने में आगे बढ़ते हों और गुनाहों से पीछे हटते हों। आप लोगों की मदद और ख़िदमत करते हों, आप अपनी तरफ से कितना भी अच्छा क्यों न करते हों लेकिन तब भी आपके क़रीबी लोग आपके आमाल को तोल कर आपको ज़ीरो क़रार दे सकते हैं। वे जजमेंटल होते हैं।
ज़्यादातर लोग दूसरों को अपने जैसा या अपने आयडियल जैसा देखना चाहते हैं। जब वे दूसरों को वैसा नहीं पाते तो वे उन पर ''बेकार' का ठप्पा लगा देते हैं। उन्हें समाज में सब लोग बेकार दिखते हैं। अपने रवैये की वजह से वे ग़मज़दा और मायूस रहने लगते हैं। फिर वे उसी मायूसी को अपनी क़ौम में फैलाते हैं। ये मोमिनों का दिल तोड़ते हैं और बाक़ी का दिल जीतते हैं। ये उलमा ए इस्लाम को मुशरिक और मुशरिकों को अल्लाह की चुनिंदा क़ौम बताते हैं। इनकी बातें उलमा ए इस्लाम के मुरीदों और आम दीनदार लोगों की समझ में नहीं आतीं तो इनमें से कोई यह तक कह देता है कि मुस्लिम उम्मत इस्लाह क़ुबूल करने का माद्दा खो चुकी है। इस्लाह से मुराद इनकी थ्योरी और दावत है। ये मुस्लिम उम्मत की हलाकत और बर्बादी की भविष्यवाणियां करते हुए मिलते हैं।
दीन में ऐसी बातों को 'नफ़्स का शर और हवा (नफ़्सानी ख़्वाहिश) कहा गया है। दीन के मुबल्लिग़ों और आलिमों में भी ऐसे लोग मौजूद हैं।
आपको दावत और तब्लीग़ के मक़सद पर जमे रहना है और अपना काम करते रहना है तो इन लोगों की बातों से अपने आप को तय न करें। उनकी बातों से उनका पता चलता है, आपका नहीं। अपने मक़सद, अपनी ख़ूबियों और अपनी हदों को आप ख़ुद जानते हैं, दूसरे नहीं। आप जितना कर सकते हैं, महज़ अपने रब की रज़ा के लिए सबकी फ़लाह की नीयत से दावत और तब्लीग़ करें।
ज़्यादातर लोग दूसरों को अपने जैसा या अपने आयडियल जैसा देखना चाहते हैं। जब वे दूसरों को वैसा नहीं पाते तो वे उन पर ''बेकार' का ठप्पा लगा देते हैं। उन्हें समाज में सब लोग बेकार दिखते हैं। अपने रवैये की वजह से वे ग़मज़दा और मायूस रहने लगते हैं। फिर वे उसी मायूसी को अपनी क़ौम में फैलाते हैं। ये मोमिनों का दिल तोड़ते हैं और बाक़ी का दिल जीतते हैं। ये उलमा ए इस्लाम को मुशरिक और मुशरिकों को अल्लाह की चुनिंदा क़ौम बताते हैं। इनकी बातें उलमा ए इस्लाम के मुरीदों और आम दीनदार लोगों की समझ में नहीं आतीं तो इनमें से कोई यह तक कह देता है कि मुस्लिम उम्मत इस्लाह क़ुबूल करने का माद्दा खो चुकी है। इस्लाह से मुराद इनकी थ्योरी और दावत है। ये मुस्लिम उम्मत की हलाकत और बर्बादी की भविष्यवाणियां करते हुए मिलते हैं।
दीन में ऐसी बातों को 'नफ़्स का शर और हवा (नफ़्सानी ख़्वाहिश) कहा गया है। दीन के मुबल्लिग़ों और आलिमों में भी ऐसे लोग मौजूद हैं।
आपको दावत और तब्लीग़ के मक़सद पर जमे रहना है और अपना काम करते रहना है तो इन लोगों की बातों से अपने आप को तय न करें। उनकी बातों से उनका पता चलता है, आपका नहीं। अपने मक़सद, अपनी ख़ूबियों और अपनी हदों को आप ख़ुद जानते हैं, दूसरे नहीं। आप जितना कर सकते हैं, महज़ अपने रब की रज़ा के लिए सबकी फ़लाह की नीयत से दावत और तब्लीग़ करें।
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