मैं हिंदुओं में से ऐतराज़ करने वाले भाईयों को 25 साल तक यह सोचकर इस्लाम पर उनके प्रश्नों का उत्तर देता रहा कि ये जानते नहीं हैं।
बाद में 'अनुभव' हुआ कि ये इस्लाम को जानना भी नहीं चाहते।
आर्य समाज और आर एस एस मुस्लिमों की विचारधारा पर हमले करके वैचारिक युद्ध लड़ रहे हैं और उन्होंने अपने सदस्यों के अंदर नफ़रत के विचार फ़ीड किए हैं कि
1. मुस्लिम शासकों ने हमारे मंदिर तोड़े।
2. हमारे पंडितों को क़त्ल किया।
3. हमें ग़ुलाम बनाया।
4. हमरी औरतों को उठाकर ले गये।
5. हमारे पूर्वजों को डराकर मुसलमान बनाया और जो नहीं बना, उसे मार डाला।
6. हमारे देश को लूट लिया।
जब एक हिंदू ने बचपन से इन विचारों को माँ-बाप, टीचर और धर्म गुरुओं के मुंह से बार बार यह सब सुना तो उसे इन बातों के सच होने का यक़ीन आ गया और उसके दिल में मुस्लिम और इस्लाम से नफ़रत बैठ गई। जब वह बड़ा होकर आर्य समाज और आर एस एस से जुड़ा तो उसे इससे भी भयानक बातें सुनाई गईं। जिन्हें सुनकर वह नफ़रत से पूरा भर गया और उसे सच दिखाई देना बंद हो गया।
जब तक उसके दिल से नफ़रत की पट्टी नहीं हटेगी, तब तक उसे कुछ दिखाई न देगा।
आँख बाहर की केवल छवियाँ देखती है। उसमें अर्थ देखने की शक्ति दिल में होती है।
इस रियलाईज़ेशन के बाद मैंने उन्हें सवालों के जवाब देने कम कर दिए और मैं उनके दिल की नफ़रत का इलाज करने लगा।
नफ़रत दिल का एक बहुत भयानक रोग है। मैं रब की बख़्शी हुई हिकमत से नफ़रत और नज़रिए का इलाज करते करते डाक्टर बन गया।
अब लोग मुझसे वैचारिक योद्धा इस्लाम में कमी बताकर सवाल करते हैं तो मैं उन्हें जवाब देते वक़्त सिर्फ़ तथ्यात्मक जवाब नहीं देता क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह तथ्य नहीं देखेगा। वह कोई नया ऐतराज़ करेगा। अब मैं जवाब कम और उनकी नफ़रत का इलाज ज़्यादा करता हूँ।
उनकी नफ़रत कम होने लगती है तो उन्हें सच दिखने लगता है कि जब इस्लाम भारत में आया तो यहाँ वर्णाश्रम धर्म आम था। जिसके कारण नियोग, सती प्रथा, ऊँचनीच और छूतछात आम थी। इनके कारण हिंदुओं ने ही करोड़ों हिंदुओं को जलाकर या अन्य तरीक़ों से मार डाला। जैसे आज भी कई राज्यों में लड़की को पैदा होते ही या कोख में ही मार दिया जाता है। इसीलिए हिंदुओं में लड़के और लड़कियों के अनुपात में असंतुलन है जबकि भारतीय मुस्लिमों में लिंगानुपात सही है।
मुस्लिम शासनकाल से पहले छोटे छोटे हिंदू राजा एक दूसरे पर चढ़ाई करके हिंदुओं को ही मार डालते थे। डा० सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात के अनुसार महाभारत के युद्ध में 1 अरब 66 करोड़ हिंदू मरे। इन्हें किसने मारा?
जवाब है कि हिन्दु राजाओं और हिन्दू सैनिकों ने।
राम रावण युद्ध में करोड़ों हिंदू मरे।
ऐसे ऐसे युद्ध बहुत हुए हैं।
क्या राम जी और सीता जी को कष्ट किसी मुस्लिम ने दिया या हिंदुओं ने?
रावण और धोबी, जिसने भी कष्ट दिया, वह हिंदू ही था।
रामायण के अनुसार शंबूक की गर्दन राम जी ने काटी तो शंबूक को भी किसी मुस्लिम से कष्ट न पहुंचा। तब शूद्रों को ज्ञान ध्यान की अनुमति नहीं थी और शूद्र भी हिंदू ही थे।
श्रीकृष्ण जी को तीर मार कर हिंदू ने घायल किया और वह उसी ज़ख़्म के कारण मर गये।
परशुराम जी ने इतने क्षत्रिय मारे कि इक्कीस बार धरती से क्षत्रिय मिटा दिये। ये क्षत्रिय भी हिंदू थे। परशुराम के कारण ही प्रजापालक राजा अग्रसेन को क्षत्रिय से वैश्य बनना पड़ा। आज तक वर्ण व्यवस्था में उनकी औलाद का एक दर्जा कम चला आ रहा है।
आदि शंकराचार्य को ज़हर हिंदुओं ने दिया।
दयानंद को कई बार ज़हर दिया गया और उन्हें जितनी बार ज़हर दिया, हिंदुओं ने दिया, मुस्लिमों ने नहीं।
गांधी को हिंदू ने ही क़त्ल किया। यह सब जानते ही हैं।
भीष्म पितामह कुछ लड़कियों का अपहरण कर लाए थे। क्या वह लड़कियाँ हिन्दू नहीं थीं?
मुस्लिम आलिमों ने कभी इन बातों का प्रचार नहीं किया ताकि हिंदू समाज में आपस में नफ़रत न फैले।
जब हिंदुओं को, अवतारों और ऋषियों को मारने वाले हिंदुओं से हिंदू प्रेम करते हैं तो अगर वही काम मुस्लिमों ने कर दिए तो मुस्लिमों से नफ़रत क्यों?
एक से प्रेम और वही काम दूसरा करे तो तो नफ़रत?
इसी को पक्षपात और अन्याय करना कहते हैं और जो भी ऐसा करता है
वह धर्म और परमेश्वर का प्रिय कभी नहीं बन सकता। उसका ठिकाना नर्क है।
यह बात समझाने से काफ़ी लोग नफ़रत, पक्षपात और अन्याय से निकल आए हैं।
और जब वे नफ़रत से निकल आते हैं तो वे इस्लाम में कमियां बताने के बुरे फंदे से भी निकल आते हैं, जिसमें सत्ता के लोभियों ने अपने हित साधन के लिए उन्हें फंसा रखा था।
ज्ञान से बड़ा होता है अनुभव। अपना अनुभव आपको बताने का मक़सद यह है कि आप ऐतराज़ के जवाब देने से पहले उन्हें नफ़रत से निकालें। अगर वे नफ़रत से निकल आए तो वे आपके दिए तथ्य निष्पक्ष होकर देखेंगे।
तब आप उन्हें बताएं कि
मुस्लिम और इस्लाम के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार के पीछे राजनैतिक स्वार्थ की सिद्धि मक़सद है। इसमें लाभ लीडर को होता है और युवाओं की बलि चढ़ जाती है। नफ़रत से उपजे आंदोलनों में मारे गए युवाओं की विधवाएं और बूढ़े मां-बाप आज भी अपनी ज़रूरतों के लिए भटक रहे हैं। कोई लीडर उनके आँसू नहीं पोंछता।
नफ़रत कैंसर से भयानक है।
सो नफ़रत से बचो। अपने और सबके हित में केवल शुभ और कल्याणकारी बात करें। अपने नज़रिए में नफ़रत के बजाय मुहब्बत को जगह दें। आपा तुरंत कल्याण होगा। आपको तुरन्त ख़ुशी मिलेगी। आपको अपने अंदर हल्कापन महसूस होगा।
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