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Sunday, February 16, 2020

वे पाँच बुनियादी सवाल क्या हैं, जिनका जवाब आलिम जानते हैं लेकिन उनके शागिर्द आम मुस्लिम नहीं जानते? -DR. ANWER JAMAL

आज मैंने फेसबुक पर अपने एक दोस्त की पोस्ट पढ़ी। उसे पढ़कर मैंने एक कमेंट किया। मैं उनकी वह पोस्ट और उस पर अपना कमेंट, दोनों  यहां दर्ज कर रहा हूं। आप भी इन दोनों को पढ़कर कमेंट करें और अपनी राय दें:
Abu Shariq: क्या इस्लाम धर्म का मक़सद सिर्फ ग़ैर मुस्लिमों को कलमा पढ़ा कर मुसलमानों के समूह में शामिल करके मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ाना है? अगर आप यह समझते हैं तो शायद आप को इस्लाम का ज्ञान नहीं है । क़ुरआन तमाम इंसानों को प्रकृति पर चिंतन करते हुए उसको उसके रचयिता और पालनहार को पहचानने की तरफ़ प्रेरित करता है। जिस सृष्टि के निर्माता ने इस पूरे संसार को चलाने के लिए प्राकृतिक नियम बनाए हैं, उसी ने तमाम इंसानों के लिए यूनिवर्सल प्राकृतिक नियमों को बनाया है। जो कोई भी उन प्राकृतिक नियमों को अपनाएगा उसका विकास होगा और जो उनको नहीं अपनाएगा उसका विकास संभव नहीं है, चाहे वह मुसलमान ही क्यों न हो। आज पूरी दुनिया में मुसलमान पिछड़ेपन का शिकार है चूंकि उन्होंने ख़ुदा के बनाए हुए प्राकृतिक नियमों को समझ कर उनका
पालन नहीं किया जबकि ग़ैर मुस्लिम क़ौमों ने अपने दिमागों का इस्तेमाल करते हुए उन प्राकृतिक नियमों को समझ कर उनका पालन किया। जिसके नतीजे में वे तरक्की कर रहे हैं. 

मेरा कमेंट:
इस्लाम का मक़सद यह है कि हरेक इंसान को सलामती और फ़लाह नसीब हो और जीवन के हर पहलू में सलामती और फ़लाह नसीब हो।
हर इंसान की जान, माल और आबरू सलामत रहे।
और फ़लाह यह है कि हर इंसान को रोटी, कपड़ा, मकान, निकाह, एजुकेशन, अमन, ख़ुशी और रोज़गार के मौक़े समान रूप से मौजूद हों।
इस्लाम का बुनियादी मक़सद है कि यतीम, बेघर, ग़ुलाम, औरत और कमज़ोर वर्गों का हाल दुनिया में अच्छा हो और पूंजीपति भी अच्छे हाल में सलामत रहें।
नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का में हर धर्म के लोगों की मदद की। यह इतना बुनियादी और इतना लाज़िम काम है कि उन्होंने ऐलाने नुबूव्वत से पहले और बाद में; दोनों हाल में हर धर्म के लोगों की फ़लाह और सलामती के लिए बहुत काम किए। जब मदीना में  इस्लामी हुकूमत क़ायम हुई, तब नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन सब पहलुओं पर इतने काम किए, जिन्हें गिनने के लिए दस बीस किताबें भी काफ़ी नहीं हैं। आज भी जहां जहां इस्लाम के उसूलों पर हुक़ूमत काम करती है, चाहे उसके इस्लामी होने में कुछ कमी भी है, तब भी वे  अमीर, ग़रीब और दरम्याने तबक़ों की सलामती और फ़लाह के लिए काम करती हैं।
यह एक ट्रैजेडी है कि हमारे मौलवी साहब के विज़न में सबकी सलामती और फ़लाह नहीं है। न वे इसके लिए काम करते हैं। वे अपने मस्लक के मस्जिद और मदरसों की हिफ़ाज़त के लिए काम करते हैं। जिससे उनकी चौधराहट और रोज़ी का सिलसिला क़ायम है। गद्दी पर क़ब्ज़े की जंग में बड़े बड़े बहुत से फ़िर्क़े बन गए हैं और फिर उनमें भी छोटे छोटे ऐंठू अकड़ू ग्रुप बन गए हैं, जिनके मुक़दमे अदालतों में चल रहे हैं। जो पहले दुनिया के झगड़ों में फ़ैसला देते थे, अब वे आलिम मुश्रिकों से अपने झगड़ों के फ़ैसले कराने की अर्ज़ियाँ उम्मत के चंदे से टाईप कराते हैं।
वे आलिम अवाम से कहते हैं कि अपने झगड़ों का फ़ैसला शरई अदालतों में कराओ लेकिन वे ख़ुद अपने झगड़ों का फ़ैसला किसी मुफ़्ती या क़ाज़ी से नहीं कराते। वे आलिम कहते हैं कि दो मुस्लिम भी हों तो वे किसी एक को अपना अमीर बना लें लेकिन ख़ुद हज़ारों हैं और वे सब किसी एक आलिम को अपना अमीर और हकम नहीं बनाते।
ऐसे आलिमों का दावा है कि हम दीन फैला रहे हैं। जबकि हक़ीक़त यह है कि वे इल्म कम और जहालत और तास्सुब ज़्यादा फैला रहे हैं। इसे आप आसानी से चेक कर सकते हैं। 
जब मैं उनके पीछे नमाज़ पढ़ने और उन्हें चंदा देने वाले पढ़े लिखे लोगों से पूछता हूँ कि
1. अल्लाह के नाम का मतलब क्या है?
2. दुआ के रूक्न और शर्तें क्या हैं?
3. शिर्क और तौहीद की क़िस्में क्या हैं?
4. पवित्र क़ुरआन में कुल कितनी आयतें हैं?
5. पवित्र क़ुरआन की सबसे छोटी सूरह का मतलब क्या है?
तो आज तक एक आदमी ने भी इन सवालों का जवाब नहीं दिया। जिससे पता चलता है कि किसी हाजी नमाज़ी को अपने दीन के बारे में बुनियादी और मोटी मोटी बातों का भी पता नहीं है। अगर किसी को शिर्क की किस्मों का पता नहीं है तो वह उनसे कैसे बचेगा? जो शिर्क से ही नहीं बच रहा है, वह आख़िरत में फ़लाह और सलामती कैसे पाएगा?
ऐसे में उसे रब के क़ानूने क़ुदरत का कैसे पता हो सकता है, जिन पर यह कायनात और इंसानी ज़िंदगी चल रही है। 
जब हम यह बात कहते हैं तो कुछ लोग यह कहते हैं कि आप आलिमों को बुरा न कहो। ठीक है भाई, हम आलिमों को बुरा नहीं कहेंगे लेकिन आलिम भी आलिमों को बुरा कहना छोड़ दें। आलिमों ने आलिमों को काफ़िर, मरदूद और जहन्नमी बताने के लिए सैकड़ों किताबें लिखी हैं और पब्लिक में हज़ारों जलसे करके बताया है कि कौन सा आलिम क्यों बुरा है?, यह सब क्या है? जब तक वे किताबें बिकती रहेंगी, आलिमों के कहने पर आम लोग आलिमों को बुरा कहते रहेंगे। आलिम अपने तबक़े के ख़िलाफ़ ऐसी किताबें लिखना और उनकी कमाई खाना बंद करें।
सच यह है कि हम आलिमों को बुरा नहीं कहते। हम आलिमों को बुरा कहना ग़लत समझते हैं। हम ख़ुद आलिमों की नस्ल हैं और हमारे घरों में आलिम, हाफ़िज़, मुफ़्ती मौजूद हैं, अल्हम्दुलिल्लाह! हमारे दादा अब्दुल मुनीफ़ ख़ाँ के दादा हज़रत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ ख़ाँ अंग्रेजों के ख़िलाफ़ रेशमी रूमाल आंदोलन चलाने वाले मौलाना महमूदुल हसन साहब के साथियों में थे। वह दारूल उलूम के एक बड़े उस्ताद थे और मौलाना हुसैन अहमद मदनी रहमतुल्लाहि अलैह उनके शागिर्दों में से थे। हज़रत मौलाना अब्दुल अज़ीज़ ख़ाँ साहब रहमतुल्लाहि अलैह एक बड़े ज़मींदार भी थे। वह दारूल उलूम देवबंद की, उसके उस्तादों और तलबा की मदद अपने माल से भी करते थे। उन्होंने दीन की हिफ़ाज़त में और आज़ादी की लड़ाई में अपना बहुत कुछ क़ुर्बान किया है। यह बात सामने रखकर हमारा लेख पढ़ें ताकि आपके माईंड में यह बात रहे कि हम जो बात कह रहे हैं, उसका ताल्लुक़ दीन की हिफ़ाज़त और अपनी उस आज़ादी की हिफ़ाज़त से है, जिसके लिए हमारे बड़ों ने, हमारे आलिमों ने क़ुर्बानियाँ दी हैं।
अगर नमाज़ में आलिम इमाम क़ुरआन से पढ़ते पढ़ते कुछ भूल जाए या ग़लत पढ़ दे तो क्या उसके पीछे ख़ड़ा नमाज़ी उसे सही आयत पढ़कर लुक़मा नहीं दिलाता। क्या आलिम को ग़लती पर तवज्जो दिलाना उसे बुरा कहना माना जाता है?
जब आलिम उम्मत की रहनुमाई में ग़लती करता है जैसे कि सबकी 'दुनिया में भी' सलामती और फ़लाह उसके विज़न और नीयत में नहीं होता और वह उसके लिए रोडमैप नहीं बनाता तो उम्मत की हालत ख़राब होने लगती है। औरतों की आबरू और मर्दों की जान जाने लगती है। ऐसे में भी आलिम अपनी फ़िरक़ाबंदी छोड़कर मुत्तहिद नहीं होते। जब आलिमों को ग़लती पर तवज्जो दिलाने पर वे उसे बुरा कहना मानते हैं और तवज्जो दिलाने वालों पर ही गुमराह और फ़ासिक़ का फ़तवा लगाने लगते हैं तो वे आम और पढ़े लिखे मुस्लिमों को अपने से निराश कर देते हैं। अब अवाम में उन्हें बुरा कहने वाले वुजूद में आते हैं।
आलिम हज़रात को आम मुस्लिम बुरा कहते हैं तो इसके पीछे ख़ुद उनका रोल कितना है? वे आज इस पर ग़ौर करें।
...और यह भी ध्यान रखें कि आम लोगों की शिकायत या उनके बुरा कहने के पीछे भी उलमा से एक उम्मीद है कि शायद ये अपनी रविश बदल लें; जोकि उनके उलमा से ताल्लुक़ की निशानी है। इससे यह  समझना ग़लत है कि वे उलमा के दुश्मन हैं। 
मैंने बचपन से अपने बच्चों को पवित्र क़ुरआन पढ़ाया हाफिज और आलिम बच्चों को क़ुरआन पढ़ाने के लिए घर पर आते हैं। मेरा एक बेटा 19 साल का हो चुका है। मेरी एक बेटी 16 साल की है। छोटे-छोटे 6 बच्चे और हैं। जिनमें दो 2-2 साल का फ़र्क़ है। उन्हें क़ुरआन मजीद पढ़ाने वाले किसी आलिम ने दस पाँच आयतों का भी मतलब आज तक नहीं बताया। क्या नबी मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे ही सहाबा ए किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन को क़ुरआन मजीद पढ़ाते थे?
अल्लाह की तरफ़ से मदद और फ़तह मिलने के उसूल क़ुरआन मजीद में हैं और एक तो यह कि सब मुस्लिम उसे पढ़ नहीं सकते और जो पढ़ सकते हैं, उन्हें पता नहीं है कि क़ुरआन मजीद की सबसे छोटी सूरह कौसर का अर्थ क्या है?, तो लाज़िमी बात है कि उन्हें अल्लाह की तरफ़ से मदद और फ़तह नहीं मिलेगी और वे अपने दुश्मनों के हाथों बर्बाद कर दिए जाएंगे। यही आज हो रहा है। इसीलिए मुझे मजबूरन आलिमों की ग़लती बतानी पड़ रही है क्योंकि आलिमों की इल्मी ग़लती की पर्दापोशी दीन में गुनाह है और इसका अज़ाब हम दुनिया में नक़द पा रहे हैं। इस अज़ाब से निकलने के लिए उस ग़लती की इस्लाह बहुत ज़रूरी है, जो उम्मत के वे रहबर कर रहे हैं, जो ख़ुद को नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वारिस बताते हैं और अल्लाह के नाम का मतलब और दुआ के रूक्न तक उम्मत को नहीं बताते। जब अल्लाह का नाम और दुआ के रूक्न ही पता नहीं हैं तो दुआ का वुजूद ही नहीं है। फिर वह क़ुबूल कैसे होती?
इल्म न होने की वजह से हमारी दुआएं भी रंग नहीं ला रही हैं और इस सिलसिले में जो ग़लती हो रही है, उसे बताना मुझे ज़रूरी लगा, सो बता रहा हूँ।
मेरा मक़सद सिर्फ़ यह है कि सूरत बदलनी चाहिए, बस!
यह सूरत बदल सकती है, अगर हम अपने रब के क़ानूने क़ुदरत को समझ लें और इनमें सबसे पहले शुक्र को समझ लें।
हमें दीन की बुनियादी बातों की जानकारी के बाद यह पता होना ज़रूरी है कि इंसान की फ़लाह और सलामती के लिए शुक्र फ़र्ज़ है यानि ज़रूरी है। शुक्र नेमतें बढ़ती हैं और दुश्मन पस्त होता है। जब भी कोई नाशुक्रा आदमी किसी शु्क्रगुज़ार मददगार मोमिन का दुश्मन बनेगा और वह उसे मिटाना चाहेगा तो अल्लाह मोमिन की मदद करेगा और उसके दुश्मन  की जड़ काट देगा। आप सूरह कौसर में इसे देख सकते हैं।
जब आप सूरह कौसर को समझकर पढ़ते हैं। जब आप इसे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत से जोड़कर पढ़ते हैं तो आप देखते हैं कि उनके दुश्मनों की जड़ कट गई। आज कोई भी आदमी ख़ुद को नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुश्मनों की नस्ल से नहीं बताता। नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में आपके  लिए नमूना और आदर्श है। इसमें इंसानियत के दुश्मनों की जड़ काटने का तरीक़ा भी मौजूद है।
इस लेख पर क्लिक करके पढ़ें:
सूरह कौसर: बरकत का अनन्त ख़ज़ाना

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का और हर नबी का तरीक़ा शुक्र का तरीक़ा है।
مَّا يَفْعَلُ اللَّـهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَآمَنتُمْ ۚ وَكَانَ اللَّـهُ شَاكِرًا عَلِيمًا ﴿١٤٧
अगर तुम अल्लाह का शुक्र करो और उसपर ईमान रखो तो अल्लाह तुम पर अज़ाब (कष्ट) देकर क्या करेगा बल्कि अल्लाह क़द्रदाँ और इल्म वाला है। -पवित्र क़ुरआन 4:147

आख़िर में हम उन सब आलिमों के शुक्रगुज़ार हैं, जिनके ज़रिए हमें इल्म और शूऊर हासिल हुआ और हम यह लेख लिखने के लायक़ हुए। हम अपने रब के शुक्रगुज़ार हैं कि हक़ जानने और बताने वाले आलिम हमारे दरमियान अब भी मौजूद हैं। 

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