क्या अब वैदिक धर्मी जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटा देंगे?
तुर्की देश में हाजिया सफ़िया म्यूज़ियम को मस्जिद बनाने का विरोध करने वाले भारतीय वैदिक और आर्य समाजी भाईयों से मुझमें अचानक यह आशा जागी है कि चाहे तुर्की के लोग न्याय न करें परन्तु वैदिक धर्म प्रचारक अवश्य न्याय करेंगे और जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर जैनियों को वापस कर देंगे या कम से कम उन्हें वापस करने के लिए लेख अवश्य लिखेंगे। स्वामी दयानन्द जी स्वीकार करते हैं:
'शंकराचार्य्य के सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में घूमने का प्रबन्ध सुधन्वादि राजाओं ने कर दिया और उन की रक्षा के लिये साथ में नौकर चाकर भी रख दिये। उसी समय से सब के यज्ञोपवीत होने लगे और वेदों का पठन-पाठन भी चला। दस वर्ष के भीतर सर्वत्र आर्यावर्त्त देश में घूम कर जैनियों का खण्डन और वेदों का मण्डन किया। परन्तु शंकराचार्य्य के समय में जैन विध्वंस अर्थात् जितनी मूर्त्तियां जैनियों की निकलती हैं। वे शंकराचार्य्य के समय में टूटी थीं और जो विना टूटी निकलती हैं वे जैनियों ने भूमि में गाड़ दी थीं कि तोड़ी न जायें। वे अब तक कहीं भूमि में से निकलती हैं। शंकराचार्य्य के पूर्व शैवमत भी थोड़ा सा प्रचरित था; उस का भी खण्डन किया। वाममार्ग का खण्डन किया। उस समय इस देश में धन बहुत था और स्वदेशभक्ति भी थी। जैनियों के मन्दिर शंकराचार्य्य और सुधन्वा राजा ने नहीं तुड़वाये थे क्योंकि उन में वेदादि की पाठशाला करने की इच्छा थी।'
-सत्यार्थ प्रकाश, 11वाँ समुल्लास
यदि वैदिक धर्मी जैनियों के क़ब्ज़ाए हुए मंदिर लौटाने के बाद हाजिया सफ़िया मस्जिद का विरोध करें तो तुर्की लोग भी न्याय करने पर मजबूर हो जाएंगे वर्ना वे भी भारतीय इतिहास पढ़कर हिंदुत्ववादियों को न्याय करने के लिए कहेंगे।
हमें वैदिक धर्म और हिन्दुत्व का सिर शर्मिंदगी से झुकने से बचाना होगा और क़ब्जाए हुए जैन मंदिर जैनियों को सादर लौटाने होंगे।
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