हमसे उत्तर लेने के लिए किसी आर्य समाजी लेखक में तीन बातें होनी आवश्यक हैं।
पहला ज्ञान, दूसरी हैसियत और तीसरी सभ्यता।
1. यदि वह हमारे पहले से लम्बित प्रश्नों के उत्तर दे देता है जो कि 'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा क्या पाया?' नामक पुस्तक में उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं तो हम जान लेंगे कि यह ज्ञान रखता है।
हमारे प्रश्नों का उत्तर दे दो और हमसे उत्तर ले लो। यह पुस्तक इंटरनेट पर मुफ़्त अवेलेबल है-
2. दूसरी बात यह है कि जो आदमी हमसे प्रश्न करे वह हमारे बराबर की हैसियत का हो यानि जैसे मैं अपने दीन के अनिवार्य नियमों का पालन करता हूं वैसे ही वह आर्य समाज के अनुसार वैदिक धर्म के अनिवार्य संस्कारों का पालन करता हो,
उनके विपरीत न चलता हो।
जो हमारे बराबर की हैसियत का हो,
वही हमसे प्रश्न करने का अधिकारी है।
जब ऐसा व्यक्ति प्रश्न करेगा,
हम उसे उत्तर देंगे।
जो दो समय हवन न करता हो, जो वैदिक गर्भाधान संस्कार के बजाय इस्लामी संस्कार से पैदा हुआ हो,
वह तो पहले ही आर्य समाज/वैदिक धर्म से बाहर है। उसे हमसे प्रश्न का अधिकार ही नहीं है और
अधिकतर आर्य समाजी ऐसे ही पतित और भ्रष्ट हैं।
स्वामी दयानंद जी ने चतुर्थ समुल्लास में ऐसे लोगों को बाहर निकालने की व्यवस्था दी है।
¤ हवन न करने वाले शूद्र्वत् हैं
स्वामी जी कहते हैं कि
‘इसलिए दिन और रात्रि के सन्धि में अर्थात् सूर्योदय और अस्त समय में परमेश्वर का ध्यान और अग्निहोत्र अवश्य करना चाहिए।।3।। और जो ये दोनों काम सायं और प्रातःकाल में न करे उसको सज्जन लोग सब द्विजों के कर्मों से बाहर निकाल देवें अर्थात् उसे शूद्रवत् समझें।।4।।
(सत्यार्थ प्रकाश, चतुर्थसमुल्लास, पृष्ठ सं. 65)
स्वामी जी कहते हैं कि
‘इसलिए दिन और रात्रि के सन्धि में अर्थात् सूर्योदय और अस्त समय में परमेश्वर का ध्यान और अग्निहोत्र अवश्य करना चाहिए।।3।। और जो ये दोनों काम सायं और प्रातःकाल में न करे उसको सज्जन लोग सब द्विजों के कर्मों से बाहर निकाल देवें अर्थात् उसे शूद्रवत् समझें।।4।।
(सत्यार्थ प्रकाश, चतुर्थसमुल्लास, पृष्ठ सं. 65)
3. तीसरी बात, उसमें सभ्यता होनी चाहिए। वह असंसदीय भाषा का इस्तेमाल न करता हो, वह गालियाँ न बकता हो। उसे सम्मानित लोगों से यानि हमसे बात करने की तमीज़ होनी ज़रूरी है। बदतमीज़ आदमियों से समाज के सम्मानित लोग बात नहीं करते।
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