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Monday, July 6, 2020

आर्य समाजी दूसरे धर्मों के महापुरुषों की मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं?

कारण
क्योंकि वास्तव में दूसरे धर्मों की मज़ाक़ उड़ाने वाले आर्य समाजी मूर्ख अर्थात् शूद्र होते हैं। वे अपने वैदिक धर्म पर चल नहीं सकते। वे दो टाईम डेली हवन तक नहीं करते। इसीलिए वे सदा कुंठित और निराश रहते हैं।
जब जब मैंने सोचा कि आर्य समाजी दूसरे धर्म के महापुरुषों की मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं और वे धर्म चर्चा के बीच में दूसरों को ग़ुस्सा दिलाने के लिए गंदी गालियाँ क्यों बकते हैं?
तब तब मेरी अन्तरात्मा ने मुझसे कहा: कुंठित और निराश आर्य समाजी इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि स्वामी दयानंद जी ने उन्हें बीच में टाँग दिया है।
देखिए कैसे?
स्वामी दयानंद जी ने उन्हें चार वैदिक आश्रमों के पालन का उपदेश दिया:
1. ब्रह्मचर्य आश्रम 2. गृहस्थ आश्रम 3. वानप्रस्थ आश्रम 4. सन्यास आश्रम
आर्य समाजी दो आश्रम ब्रह्मचर्य और सन्यास नहीं करते हैं। आर्य समाजी युवाओं को उनके पिता गुरूकुल के बजाय कान्वेंट स्कूल में लड़कियों के साथ पढवाते हैं। जहाँ उनका ब्रह्मचर्य सब नष्ट हो जाता है। दयानंद एंग्लो वैदिक कालिज (DAV College) में भी लड़के लड़कियां साथ साथ पढ़ते हैं। जोकि दयानंद जी की शिक्षा के विपरीत है। 
आर्य समाजियों से वानप्रस्थ आश्रम भी नहीं होता। गृहस्थ आश्रम उनका यूं सफल नहीं है क्योंकि आर्य समाजी दयानंद जी की बताई जटिल रीति के अनुसार चार पंडितों से गर्भाधान संस्कार के मंत्र पढ़वाए बिना, उनसे और सब वृद्धों से आशीर्वाद लिए बिना मुस्लिमों की तरह ही पत्नी को गर्भवती करते हैं। क्योंकि आसान और प्रैक्टिकल तरीक़ा यही है।
आर्य समाजी अपने धर्म के चार आश्रमों 1. ब्रह्मचर्य आश्रम 2. गृहस्थ आश्रम 3. वानप्रस्थ आश्रम 4. सन्यास आश्रम; पर नहीं चल पाते। जिसके कारण वे कुंठित और निराशा से हर समय खीझते और चिढ़ते रहते हैं। जब वे मुस्लिमों को ज़कात (दान) देते हुए और नमाज़ पढ़ते हुए या सिखों को अरदास करते हुए देखते हैं और दूसरे धर्म वालों को अपने धर्म पर चलते हुए देखते है तो उन्हें अपनी दुर्दशा पर बहुत क्रोध आता है। इसीलिए वे दूसरों के अच्छे कामों की सराहना नहीं करते बल्कि उन पर क्रोधित होकर उनका मज़ाक़ उड़ाते रहते हैं। ख़ुद को आर्य समाजी दिखाने के लिए उनके पास बस अब यही एक काम बचा है कि दूसरे धर्मों की और उनके महापुरुषों की मज़ाक़ उड़ाते रहें। वे यह भी न करें तो वे आर्य समाजी न दिखें।
इसकी असल वजह यही है कि न तो वे अपने वैदिक धर्म के चारों आश्रमों पर चलते हैं और न ही चल सकते हैं। अब वे न वैदिक धर्म पर चल सकते हैं और न उसे अव्यवहारिक कहकर छोड़ सकते हैं। आज आर्य समाजी बीच में टंगे हुए हैं।
वास्तव में अधिकतर आर्य समाजी 'आर्य' (श्रेष्ठ) ही नहीं होते बल्कि वे अनार्य और शूद्र अर्थात मूर्ख होते हैं क्योंकि जो लोग अपने धर्म पर न चलकर दूसरे धर्म के महापुरुषों को गालियाँ देते हैं, वे अपनी मूर्खता ही प्रर्दशित करते हैं।
हमारा चैलेंज
अगर वास्तव में वैदिक धर्म का पालन सम्भव है तो आर्य समाजी अपने चारों वैदिक आश्रमों और सोलह संस्कारों का पालन करके दिखाएं।

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