बक़रईद से पहले कुछ हिंदुत्ववादी क़ुरबानी का विरोध करने लगते हैं। यह हर साल का काम बन चुका है। ये ख़ुद को जीवों की रक्षा करने वाला कहते हैं जबकि इन्हें जीव रक्षा से कोई वास्ता नहीं है। मैंने इन लोगों से हमेशा कहा है कि
आप मछली और सुअर को बचाने के लिए भी आंदोलन करो। वे भी जीव हैं लेकिन ये लोग ऐसा नहीं करते और न ही ये कभी ऐसा करेंगे क्योंकि
वास्तव में ये अपनी नज़र में मुस्लिम समाज से एक जंग लड़ रहे हैं और ये लोग यह जंग भी मुस्लिमों के तरीक़े पर माँस खाते हुए लड़ रहे हैं। ये भारत को बीफ़ निर्यात में चोटी के दो चार देशों में पहुंचा चुके हैं। इनके फ़्रिज में मछली और मुर्ग़ा भरा रहता है। दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, आसाम, उड़ीसा, बंगाल और गढ़वाल में आम हिन्दुओं के दैनिक भोजन में मछली शामिल है। हिंदुत्ववादियों को इनके जीव मारने और मांस खाने पर आपत्ति नहीं है।
हक़ीक़त यह है कि हिंदूवादी संघ को सत्ता पाने और फिर उसे क़ायम रखने के लिए 738 जातियों को अपनी छत्री के नीचे एक रखने की ज़रूरत है और इसके लिए उसे एक दुश्मन की ज़रूरत है, जिससे वह सब जातियों को डरा सके और सबको उससे लड़ा सके। उसने उस दुश्मन के रूप में मुस्लिम का चुनाव किया है। उसी ने इन्हें मुस्लिम विरोध का टास्क दिया है। यही विरोध इन्हें संघ की छत्री में एक रखता है।
इसीलिए बक़रईद पर हिंदुत्ववादी क़ुर्बानी का विरोध करते हैं।
बक़रईद पर क़ुर्बानी के विरोध के पीछे राजनैतिक उद्देश्य होते हैं। यह अब साफ़ है।
आपको इस विरोध के जवाब में लिखते हुए यह समझाना ज़रूरी है कि
बक़रईद के मौक़े पर जो पशु मुस्लिम ख़रीदते हैं,
उन्हें पालने और बेचने वाले राजस्थान और पहाड़ी इलाक़ों की हिन्दू जातियों के लोग (वास्तव में पिछड़े, दलित और आदिवासी) होते हैं और उन पशुओं का हड्डी, चमड़ा व अन्य अवशेष टैनरियों, फ़ैक्ट्रियों और फ़ार्मेसियों को जाता है। जिनके मालिक भी हिन्दू (वास्तव में सवर्ण जाति वाले) होते हैं। इस्लामी क़ुर्बानी से खरबों रूपए का रोज़गार पैदा होता है और यक़ीनन यह खरबों रूपया भारत के (हिन्दू/सवर्ण) राजनेताओं से लेकर किसान मज़दूर, सबके हाथों में ज़रूर पहुंचता है। राजनेता उस रूपए को अपनी सरकार मज़बूत बनाने में लगाते हैं और आम हिंदू उस रूपए से अपनी बेटियाँ ब्याहते हैं। जिससे हिंदुओं के घरों में लाखों बच्चे पैदा होते हैं। ये वे हिंदू हित हैं, जिन्हें इस्लामी क़ुर्बानी सपोर्ट करती है। हिंदुत्ववादी होने के नाते हिंदुत्ववादियों को हिन्दू हितों को सपोर्ट करना चाहिए, न कि उनके विरोध में खड़ा होना चाहिए।
क्या क़ुरबानी को रोकने का सीधा अर्थ हिंदुओं की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करना नहीं है?
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